श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 30: प्रचेताओं के कार्यकलाप  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  4.30.17 
 
 
दिव्यवर्षसहस्राणां सहस्रमहतौजस: ।
भौमान् भोक्ष्यथ भोगान् वै दिव्यांश्चानुग्रहान्मम ॥ १७ ॥
 
अनुवाद
 
  तब भगवान ने सभी प्रचेताओं को आशीर्वाद देते हुए कहा: हे राजकुमारो, मेरी कृपा से तुम इस संसार एवं स्वर्ग की सभी सुख-सुविधाओं का उपभोग कर सकते हो। इस प्रकार तुम सभी को बिना किसी रूकावट के और पूरे सामर्थ्य के साथ दस लाख दिव्य वर्षों तक आनंदित रहने का वरदान प्राप्त है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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