श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 30: प्रचेताओं के कार्यकलाप  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  4.30.16 
 
 
अपृथग्धर्मशीलानां सर्वेषां व: सुमध्यमा ।
अपृथग्धर्मशीलेयं भूयात्पत्‍न्यर्पिताशया ॥ १६ ॥
 
अनुवाद
 
  तुम सभी भाइयो, एक समान स्वभाव के हो, क्योंकि तुम मेरे भक्त और अपने पिता के आज्ञाकारी पुत्र हो। इसी प्रकार, यह लड़की भी उसी प्रकार की है और तुम सभी के प्रति समर्पित है। अतः यह लड़की और तुम, प्राचीनबर्हिषत् के पुत्र, एक ही मंच पर हो, एक सामान्य सिद्धांत पर एकजुट हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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