श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 30: प्रचेताओं के कार्यकलाप  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  4.30.15 
 
 
प्रजाविसर्ग आदिष्टा: पित्रा मामनुवर्तता ।
तत्र कन्यां वरारोहां तामुद्वहत मा चिरम् ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  चूंकि तुम सब मेरे कहने में रहते हो, इसलिए मैं तुम्हें आदेश देता हूँ कि तुम तुरंत उस सुंदर और गुणवती युवती से विवाह करो। अपने पिता की इच्छा के अनुसार तुम उसके साथ संतान उत्पन्न करो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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