श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 30: प्रचेताओं के कार्यकलाप  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  4.30.14 
 
 
क्षुत्क्षामाया मुखे राजा सोम: पीयूषवर्षिणीम् ।
देशिनीं रोदमानाया निदधे स दयान्वित: ॥ १४ ॥
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात वृक्षों के संरक्षण में रखा गया वह शिशु भूख से रोने लगा। उस समय जंगल के राजा यानी चंद्रमा के राजा ने दयावश अपनी अंगुली (तर्जनी) शिशु के मुँह में रख दी जिससे अमृत निकलता था। इस तरह शिशु का पालन-पोषण चंद्र राजा की कृपा से हुआ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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