श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 30: प्रचेताओं के कार्यकलाप  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  4.30.11 
 
 
यद्यूयं पितुरादेशमग्रहीष्ट मुदान्विता: ।
अथो व उशती कीर्तिर्लोकाननु भविष्यति ॥ ११ ॥
 
अनुवाद
 
  क्योंकि तुम लोगों ने अपने दिल से खुशी-खुशी अपने पिता के आदेशों को मान्यता दी है और उन आदेशों का बहुत ईमानदारी से पालन किया है, इसलिए तुम्हारे आकर्षक गुण पूरे विश्व में सराहे जाएँगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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