श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 30: प्रचेताओं के कार्यकलाप  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  4.30.10 
 
 
ये तु मां रुद्रगीतेन सायं प्रात: समाहिता: ।
स्तुवन्त्यहं कामवरान्दास्ये प्रज्ञां च शोभनाम् ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  प्रातः और सायं शिवजी के द्वारा रचित स्तुति से मेरी प्रार्थना करने वाले भक्तों को मैं वरदान प्रदान करूँगा। इस प्रकार वे अपनी इच्छाओं की पूर्ति के साथ-साथ सद्बुद्धि भी प्राप्त कर सकेंगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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