श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 30: प्रचेताओं के कार्यकलाप  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  4.30.1 
 
 
विदुर उवाच
ये त्वयाभिहिता ब्रह्मन् सुता: प्राचीनबर्हिष: ।
ते रुद्रगीतेन हरिं सिद्धिमापु: प्रतोष्य काम् ॥ १ ॥
 
अनुवाद
 
  विदुर ने मैत्रेय से पूछा: हे ब्राह्मण, आपने पहले प्राचीनबर्हि के पुत्रों के बारे में कहा था कि उन्होंने भगवान शिव द्वारा रचे गीत का जाप करके भगवान को प्रसन्न किया। तो उन्हें इससे क्या मिला?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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