यदि व्रजिष्यस्यतिहाय मद्वचो
भद्रं भवत्या न ततो भविष्यति ।
सम्भावितस्य स्वजनात्पराभवो
यदा स सद्यो मरणाय कल्पते ॥ २५ ॥
अनुवाद
अगर इस उपदेश के बावजूद मेरे शब्दों की अवहेलना करके तुम जाना चाहती हो, तो तुम्हारा भविष्य अच्छा नहीं होगा। तुम बहुत सम्माननीय हो और जब तुम्हें तुम्हारे अपने अपमानित कर देंगे, तो यह अपमान तुरंत मृत्यु के बराबर हो जाएगा।
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध चार के अंतर्गत तीसरा अध्याय समाप्त होता है ।