श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 29: नारद तथा राजा प्राचीनबर्हि के मध्य वार्तालाप  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  4.29.10 
 
 
खद्योताविर्मुखी चात्र नेत्रे एकत्र निर्मिते ।
रूपं विभ्राजितं ताभ्यां विचष्टे चक्षुषेश्वर: ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  वर्णित खद्योत और आविर्मुखी नाम के दो द्वार एक ही स्थान पर पास में स्थित दो नेत्र हैं। विभ्राजित नामक नगरी को रूप समझा जाना चाहिए। इस प्रकार, दोनों नेत्र सदैव विभिन्न प्रकार के रूपों को देखने के कार्य में तत्पर रहते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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