खद्योताविर्मुखी चात्र नेत्रे एकत्र निर्मिते ।
रूपं विभ्राजितं ताभ्यां विचष्टे चक्षुषेश्वर: ॥ १० ॥
अनुवाद
वर्णित खद्योत और आविर्मुखी नाम के दो द्वार एक ही स्थान पर पास में स्थित दो नेत्र हैं। विभ्राजित नामक नगरी को रूप समझा जाना चाहिए। इस प्रकार, दोनों नेत्र सदैव विभिन्न प्रकार के रूपों को देखने के कार्य में तत्पर रहते हैं।