श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 28: अगले जन्म में पुरञ्जन को स्त्री-योनि की प्राप्ति  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  4.28.8 
 
 
आत्मानं कन्यया ग्रस्तं पञ्चालानरिदूषितान् ।
दुरन्तचिन्तामापन्नो न लेभे तत्प्रतिक्रियाम् ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  जब राजा पुरञ्जन ने देखा कि उनके परिवार, रिश्तेदार, अनुयायी, नौकर, सचिव और बाकी सभी उनके ख़िलाफ़ हो गए हैं, तो वो बहुत चिंतित हुए। लेकिन वो कुछ कर नहीं पा रहे थे क्योंकि कालकन्या ने उन्हें बुरी तरह हरा दिया था।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.