आत्मानं कन्यया ग्रस्तं पञ्चालानरिदूषितान् ।
दुरन्तचिन्तामापन्नो न लेभे तत्प्रतिक्रियाम् ॥ ८ ॥
अनुवाद
जब राजा पुरञ्जन ने देखा कि उनके परिवार, रिश्तेदार, अनुयायी, नौकर, सचिव और बाकी सभी उनके ख़िलाफ़ हो गए हैं, तो वो बहुत चिंतित हुए। लेकिन वो कुछ कर नहीं पा रहे थे क्योंकि कालकन्या ने उन्हें बुरी तरह हरा दिया था।