विशीर्णां स्वपुरीं वीक्ष्य प्रतिकूलाननादृतान् ।
पुत्रान् पौत्रानुगामात्याञ्जायां च गतसौहृदाम् ॥ ७ ॥
अनुवाद
तब राजा पुरञ्जन ने देखा कि उसकी नगरी अस्त-व्यस्त हो गई थी और उसके पुत्र, पौत्र, नौकर और मंत्री सभी क्रमश: उसके विरोधी बनते जा रहे थे। उसने यह भी देखा कि उसकी पत्नी स्नेहशून्य और अन्यमनस्क हो रही थी।