एवं स मानसो हंसो हंसेन प्रतिबोधित: ।
स्वस्थस्तद्वयभिचारेण नष्टामाप पुन: स्मृतिम् ॥ ६४ ॥
अनुवाद
इस प्रकार दोनों हंस हृदय में साथ-साथ रहते हैं। जब एक हंस दूसरे को ज्ञान देता है तब वह अपनी स्वाभाविक स्थिति में होता है। जिसका अर्थ है कि वह अपनी मूल कृष्णभावना प्राप्त कर लेता है, जिसे भौतिक मोह के कारण खो दिया था।