यथा पुरुष आत्मानमेकमादर्शचक्षुषो: ।
द्विधाभूतमवेक्षेत तथैवान्तरमावयो: ॥ ६३ ॥
अनुवाद
जिस प्रकार कोई व्यक्ति अपना बिम्ब शीशे में स्वयं का एक अंग समझकर देखता है, जबकि अन्य लोग दरअसल दो शरीर देखते हैं, उसी प्रकार हमारी इस भौतिक स्थिति में, जिसमें जीव प्रभावित होते हुए भी प्रभावित नहीं होता, ईश्वर और जीव के बीच एक अंतर होता है।