श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 28: अगले जन्म में पुरञ्जन को स्त्री-योनि की प्राप्ति  »  श्लोक 57
 
 
श्लोक  4.28.57 
 
 
पञ्चेन्द्रियार्था आरामा द्वार: प्राणा नव प्रभो ।
तेजोऽबन्नानि कोष्ठानि कुलमिन्द्रियसङ्ग्रह: ॥ ५७ ॥
 
अनुवाद
 
  हे मित्र, पाँच उद्यान इन्द्रियसुख के पांच प्रकार हैं और रक्षक जीवन वायु है, जो नौ द्वारों से होकर आती-जाती है। तीन प्रकोष्ठ तीन मुख्य तत्व हैं - आग, पानी और धरती। मन सहित पाँच इंद्रियों का कुल छह परिवार हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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