श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 28: अगले जन्म में पुरञ्जन को स्त्री-योनि की प्राप्ति  »  श्लोक 53
 
 
श्लोक  4.28.53 
 
 
अपि स्मरसि चात्मानमविज्ञातसखं सखे ।
हित्वा मां पदमन्विच्छन् भौमभोगरतो गत: ॥ ५३ ॥
 
अनुवाद
 
  ब्राह्मण आगे बोला : हे मित्र, यद्यपि अभी तुम्हारा मेरे प्रति पहचान का भाव तुरंत नहीं जागा है, परंतु क्या तुम्हें याद नहीं है कि भूतकाल में तुम मेरे अत्यंत निकट के मित्र थे? दुर्भाग्य से तुमने मेरा साथ छोड़कर इस भौतिक जगत का भोग करने वाले का पद अपना लिया था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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