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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 28: अगले जन्म में पुरञ्जन को स्त्री-योनि की प्राप्ति
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श्लोक 49
श्लोक
4.28.49
एवं विलपन्ती बाला विपिनेऽनुगता पतिम् ।
पतिता पादयोर्भर्तू रुदत्यश्रूण्यवर्तयत् ॥ ४९ ॥
अनुवाद
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अपने पति की मृत्यु पर उस आज्ञाकारी पत्नी ने अपने पति के चरणों में सर रख दिया और उस एकान्त वन में जोर-जोर से रोने लगी। उसकी आँखों से निरंतर अश्रुधारा बह रही थी।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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