श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 28: अगले जन्म में पुरञ्जन को स्त्री-योनि की प्राप्ति  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  4.28.47 
 
 
आत्मानं शोचती दीनमबन्धुं विक्लवाश्रुभि: ।
स्तनावासिच्य विपिने सुस्वरं प्ररुरोद सा ॥ ४७ ॥
 
अनुवाद
 
  जंगल में इकला और विधवा हो जाने पर विदर्भ की राजकुमारी विलाप करने लगी उसका रोना ऐसा था कि उसके आँसू झड़ रहे थे। उसके आँसू उसके स्तनों पर गिर रहे थे जिससे उसके स्तन भीग रहे थे। वह अत्यंत जोर-जोर से रो रही थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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