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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 28: अगले जन्म में पुरञ्जन को स्त्री-योनि की प्राप्ति
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श्लोक 46
श्लोक
4.28.46
यदा नोपलभेताङ्घ्रावूष्माणं पत्युरर्चती ।
आसीत्संविग्नहृदया यूथभ्रष्टा मृगी यथा ॥ ४६ ॥
अनुवाद
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जब उसने पतिदेव के चरण दबाये तो अनुभव हुआ कि उनके पैर अब गर्म नहीं हैं, अत: वह समझ गई कि उन्होंने शरीर छोड़ दिया है। पतिदेव के बिना वह चिंतित होने लगीं। उनके बिना वह उस मृगनयनी सी लगीं जो अपने प्रिय के बिना अप्रिय हुई है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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