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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 28: अगले जन्म में पुरञ्जन को स्त्री-योनि की प्राप्ति
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श्लोक 45
श्लोक
4.28.45
अजानती प्रियतमं यदोपरतमङ्गना ।
सुस्थिरासनमासाद्य यथापूर्वमुपाचरत् ॥ ४५ ॥
अनुवाद
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राजा विदर्भ की बेटी इस आसन से तब तक अपने पति की सेवा करती रही, जब तक कि वह इस शरीर से कूच करके चल बसे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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