श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 28: अगले जन्म में पुरञ्जन को स्त्री-योनि की प्राप्ति  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  4.28.43 
 
 
पतिं परमधर्मज्ञं वैदर्भी मलयध्वजम् ।
प्रेम्णा पर्यचरद्धित्वा भोगान् सा पतिदेवता ॥ ४३ ॥
 
अनुवाद
 
  राजा विदर्भ की पुत्री अपने पति को सर्वोच्च देवता के रूप में सम्मान देती थी। उसने सभी भौतिक सुखों को त्याग दिया और पूरी तरह से वैराग्यपूर्ण होकर अपने ज्ञानी पति के सिद्धांतों का पालन करना शुरू कर दिया। इस तरह, वह उनकी सेवा में समर्पित हो गई।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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