श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 28: अगले जन्म में पुरञ्जन को स्त्री-योनि की प्राप्ति  »  श्लोक 42
 
 
श्लोक  4.28.42 
 
 
परे ब्रह्मणि चात्मानं परं ब्रह्म तथात्मनि ।
वीक्षमाणो विहायेक्षामस्मादुपरराम ह ॥ ४२ ॥
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार राजा मलयध्वज परमात्मा की उपस्थिति को अपने पास अनुभव कर सका और स्वयं आत्मा रूप में परमात्मा के पास बैठा हुआ देख सका। चूंकि दोनों एक साथ थे, अतः उनके अलग-अलग हितों की आवश्यकता नहीं थी। इस प्रकार उसने ऐसे कार्य करना बंद कर दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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