श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 28: अगले जन्म में पुरञ्जन को स्त्री-योनि की प्राप्ति  »  श्लोक 39
 
 
श्लोक  4.28.39 
 
 
आस्ते स्थाणुरिवैकत्र दिव्यं वर्षशतं स्थिर: ।
वासुदेवे भगवति नान्यद्वेदोद्वहन् रतिम् ॥ ३९ ॥
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार देवों के हिसाब से वे सौ साल तक एक ही स्थान पर अडिग रहे। इसके बाद उन्हें भगवान कृष्ण के प्रति भक्तिमयी आसक्ति हो गई और वे उसी स्थिति में स्थिर हो गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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