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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 28: अगले जन्म में पुरञ्जन को स्त्री-योनि की प्राप्ति
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श्लोक 38
श्लोक
4.28.38
तपसा विद्यया पक्वकषायो नियमैर्यमै: ।
युयुजे ब्रह्मण्यात्मानं विजिताक्षानिलाशय: ॥ ३८ ॥
अनुवाद
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पूजा, तप साधना और नियमों के पालन से राजा मलयध्वज ने अपनी इंद्रियों, प्राण और चेतना पर विजय प्राप्त की। इस प्रकार उन्होंने हर चीज़ को सर्वोच्च ब्रह्म (कृष्ण) के केंद्र बिंदु पर स्थिर कर दिया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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