श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 28: अगले जन्म में पुरञ्जन को स्त्री-योनि की प्राप्ति  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  4.28.34 
 
 
हित्वा गृहान् सुतान् भोगान् वैदर्भी मदिरेक्षणा ।
अन्वधावत पाण्ड्येशं ज्योत्‍स्‍नेव रजनीकरम् ॥ ३४ ॥
 
अनुवाद
 
  जैसे रात्रि में चाँदनी चंद्रमा के पीछे-पीछे चलती है, वैसे ही राजा मलयध्वज के कुलाचल चले जाने पर उनके पीछे-पीछे उनकी पत्नी अपने पति के प्रेम में पगलाई हुई, घर-गृहस्थी, पुत्र-परिवार सभी को त्यागकर चली गई।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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