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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 28: अगले जन्म में पुरञ्जन को स्त्री-योनि की प्राप्ति
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श्लोक 27
श्लोक
4.28.27
अनन्तपारे तमसि मग्नो नष्टस्मृति: समा: ।
शाश्वतीरनुभूयार्तिं प्रमदासङ्गदूषित: ॥ २७ ॥
अनुवाद
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स्त्री संगति के कारण राजा पुरञ्जन जैसे जीवात्मा को भौतिक संसार के सारे दुख निरंतर सहने पड़ते हैं और बहुत सालों तक सारी स्मृतियों से रहित रहकर भौतिक जीवन के अंधेरे में पड़े रहना पड़ता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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