श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 28: अगले जन्म में पुरञ्जन को स्त्री-योनि की प्राप्ति  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  4.28.26 
 
 
तं यज्ञपशवोऽनेन संज्ञप्ता येऽदयालुना ।
कुठारैश्चिच्छिदु: क्रुद्धा: स्मरन्तोऽमीवमस्य तत् ॥ २६ ॥
 
अनुवाद
 
  बहुत निर्दयी राजा पुरञ्जन ने कई यज्ञों में अनेक पशुओं का वध किया था। अब वक्त का फायदा उठाकर वे सारे पशु उसे अपने सींगों से घायल करने लगे। ऐसा लग रहा था मानो उसे कुल्हाड़ियों से काट-काटकर टुकड़े-टुकड़े किया जा रहा हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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