श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 28: अगले जन्म में पुरञ्जन को स्त्री-योनि की प्राप्ति  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  4.28.24 
 
 
पुरीं विहायोपगत उपरुद्धो भुजङ्गम: ।
यदा तमेवानु पुरी विशीर्णा प्रकृतिं गता ॥ २४ ॥
 
अनुवाद
 
  वह सर्प, जिसे यवन-राजा के सैनिकों ने पहले ही बंदी बनाकर नगरी से बाहर कर दिया था, अन्य लोगों के साथ अपने स्वामी के पीछे-पीछे चलने लगा। जैसे ही वे सभी नगरी से बाहर निकले, त्योंही वह नगरी तहस-नहस होकर धूल में मिल गई।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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