एवं कृपणया बुद्ध्या शोचन्तमतदर्हणम् ।
ग्रहीतुं कृतधीरेनं भयनामाभ्यपद्यत ॥ २२ ॥
अनुवाद
यद्यपि राजा पुरञ्जन को अपनी पत्नी एवं बच्चों की नियति पर खेद नहीं जताना चाहिए था, परन्तु उनकी निम्न बुद्धि के कारण उन्होंने ऐसा किया। उसी समय, भय नाम के यवनराजा शीघ्र ही उन्हें बंदी बनाने के लिए सामने आये।