कथं नु दारका दीना दारकीर्वापरायणा: ।
वर्तिष्यन्ते मयि गते भिन्ननाव इवोदधौ ॥ २१ ॥
अनुवाद
राजा पुरंजना चिंतित रहने लगे और सोचा, "मैं इस संसार से चला जाऊँगा तो मेरे ऊपर आश्रित पुत्र और पुत्रियाँ अपना जीवन कैसे चलाएँगे? उनकी स्थिति उस जहाज के यात्रियों की तरह होगी जो समुद्र में किसी तूफान में फँसकर टूट गया हो।"