श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 28: अगले जन्म में पुरञ्जन को स्त्री-योनि की प्राप्ति  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  4.28.20 
 
 
प्रबोधयति माविज्ञं व्युषिते शोककर्शिता ।
वर्त्मैतद् गृहमेधीयं वीरसूरपि नेष्यति ॥ २० ॥
 
अनुवाद
 
  राजा पुरञ्जन सोचता रहा कि जब वह मोह में फँसा हुआ होता था, तब उसकी पत्नी उसे कैसे अच्छी सलाह देती थी और जब वह घर से बाहर जाता था, तब वह कितनी दुखी हो जाती थी। यद्यपि वह कई बेटों और वीरों की माँ थी, फिर भी राजा को डर था कि वह गृहस्थी का भार नहीं उठा पाएगी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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