राजा पुरञ्जन सोचता रहा कि जब वह मोह में फँसा हुआ होता था, तब उसकी पत्नी उसे कैसे अच्छी सलाह देती थी और जब वह घर से बाहर जाता था, तब वह कितनी दुखी हो जाती थी। यद्यपि वह कई बेटों और वीरों की माँ थी, फिर भी राजा को डर था कि वह गृहस्थी का भार नहीं उठा पाएगी।