श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 28: अगले जन्म में पुरञ्जन को स्त्री-योनि की प्राप्ति  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  4.28.2 
 
 
त एकदा तु रभसा पुरञ्जनपुरीं नृप ।
रुरुधुर्भौमभोगाढ्यां जरत्पन्नगपालिताम् ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  एक बार, वहशी सैनिकों ने पुरञ्जन नगरी पर तीव्र गति से हमला किया। यद्यपि नगरी भोग-विलास की सामग्री से भरी हुई थी, परन्तु उसकी रक्षा एक बूढ़ा सर्प कर रहा था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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