श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 28: अगले जन्म में पुरञ्जन को स्त्री-योनि की प्राप्ति  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  4.28.18 
 
 
लोकान्तरं गतवति मय्यनाथा कुटुम्बिनी ।
वर्तिष्यते कथं त्वेषा बालकाननुशोचती ॥ १८ ॥
 
अनुवाद
 
  राजा पुरञ्जन अत्यन्त चिन्तित होकर विचार करने लगा, “हाय! मेरी पत्नी इतने सारे बच्चों से परेशान होकर रहेगी। जब मैं यह शरीर त्याग दूँगा तो वह किस प्रकार परिवार के इन सभी सदस्यों का पालन-पोषण करेगी? हाय! परिवार का पालन-पोषण करने के विचार से उसे अत्यधिक कष्ट होगा।”
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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