श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 27: राजा पुरञ्जन की नगरी पर चण्डवेग का धावा और कालकन्या का चरित्र  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  4.27.11 
 
 
ईजे च क्रतुभिर्घोरैर्दीक्षित: पशुमारकै: ।
देवान् पितृन् भूतपतीन्नानाकामो यथा भवान् ॥ ११ ॥
 
अनुवाद
 
  नारद मुनि ने आगे कहा: हे राजा प्राचीनबर्हिषत्, तुम्हारी तरह ही राजा पुरञ्जन भी कई इच्छाओं से घिरा हुआ था। इसलिए उसने देवताओं, पितरों और समाज के अग्रगण्य नेताओं की पूजा विभिन्न यज्ञों द्वारा की, लेकिन ये सभी यज्ञ खून के प्यासे थे क्योंकि उनके पीछे जानवरों के वध की भावना काम कर रही थी।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.