श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 26: राजा पुरञ्जन का आखेट के लिए जाना और रानी का क्रुद्ध  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  4.26.9 
 
 
तत्र निर्भिन्नगात्राणां चित्रवाजै: शिलीमुखै: ।
विप्लवोऽभूद्दु:खितानां दु:सह: करुणात्मनाम् ॥ ९ ॥
 
अनुवाद
 
  जब राजा पुरंजय इस प्रकार शिकार करने लगे तो नुकीले तीरों से बिंधकर जंगल में अनेक पशु बहुत पीड़ा से मर गए। राजा के इन विनाशकारी और निर्दयी कार्यों को देखकर दयालु लोग बहुत दुखी हो गए। ऐसे दयालु लोग यह सब मारे जाते हुए देखकर बर्दाश्त नहीं कर सके।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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