अन्यथा मनमाना व्यवहार करनेवाला व्यक्ति मिथ्याभिमान में फँसकर नीचे गिरता है और इस प्रकार तीनों गुणों [सात्विक, रजस और तमस] से युक्त प्रकृति के नियमों में बंध जाता है। इस प्रकार यह जीवात्मा अपनी वास्तविक बुद्धि से रहित हो जाती है और जन्म और मृत्यु के चक्र में हमेशा के लिए खो जाती है। इस तरह वह मल में मिलनेवाले एक सूक्ष्म जीवाणु से लेकर ब्रह्मलोक में उच्च पद तक ऊपर-नीचे आता-जाता रहता है।