श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 26: राजा पुरञ्जन का आखेट के लिए जाना और रानी का क्रुद्ध  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  4.26.8 
 
 
अन्यथा कर्म कुर्वाणो मानारूढो निबध्यते ।
गुणप्रवाहपतितो नष्टप्रज्ञो व्रजत्यध: ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  अन्यथा मनमाना व्यवहार करनेवाला व्यक्ति मिथ्याभिमान में फँसकर नीचे गिरता है और इस प्रकार तीनों गुणों [सात्विक, रजस और तमस] से युक्त प्रकृति के नियमों में बंध जाता है। इस प्रकार यह जीवात्मा अपनी वास्तविक बुद्धि से रहित हो जाती है और जन्म और मृत्यु के चक्र में हमेशा के लिए खो जाती है। इस तरह वह मल में मिलनेवाले एक सूक्ष्म जीवाणु से लेकर ब्रह्मलोक में उच्च पद तक ऊपर-नीचे आता-जाता रहता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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