श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 26: राजा पुरञ्जन का आखेट के लिए जाना और रानी का क्रुद्ध  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  4.26.25 
 
 
वक्त्रं न ते वितिलकं मलिनं विहर्षं
संरम्भभीममविमृष्टमपेतरागम् ।
पश्ये स्तनावपि शुचोपहतौ सुजातौ
बिम्बाधरं विगतकुङ्कुमपङ्करागम् ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  प्रिये, आज तक मैंने तुम्हारे माथे पर तिलक बबिना कभी नहीं देखा, मैंने तुम्हें कभी इतनी हताश, नीरस और स्नेहशून्य भी नहीं देखा। मैंने तुम्हारे स्तनों को आँसुओं से भीगा हुआ कभी नहीं देखा, मैंने तुम्हारे बिंबफल जैसे लाल होठों को कभी इस रंग से वंचित नहीं पाया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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