वक्त्रं न ते वितिलकं मलिनं विहर्षं
संरम्भभीममविमृष्टमपेतरागम् ।
पश्ये स्तनावपि शुचोपहतौ सुजातौ
बिम्बाधरं विगतकुङ्कुमपङ्करागम् ॥ २५ ॥
अनुवाद
प्रिये, आज तक मैंने तुम्हारे माथे पर तिलक बबिना कभी नहीं देखा, मैंने तुम्हें कभी इतनी हताश, नीरस और स्नेहशून्य भी नहीं देखा। मैंने तुम्हारे स्तनों को आँसुओं से भीगा हुआ कभी नहीं देखा, मैंने तुम्हारे बिंबफल जैसे लाल होठों को कभी इस रंग से वंचित नहीं पाया।