पुरञ्जन उवाच
नूनं त्वकृतपुण्यास्ते भृत्या येष्वीश्वरा: शुभे ।
कृताग:स्वात्मसात्कृत्वा शिक्षादण्डं न युञ्जते ॥ २१ ॥
अनुवाद
राजा पुरञ्जन ने कहा: हे सुन्दरी, जब स्वामी किसी मनुष्य को अपना दास तो मान लेता है, लेकिन उसके अपराधों के लिए उसे दंड नहीं देता, तो उस दास को दुर्भाग्यशाली समझना चाहिए।