अनुनिन्येऽथ शनकैर्वीरोऽनुनयकोविद: ।
पस्पर्श पादयुगलमाह चोत्सङ्गलालिताम् ॥ २० ॥
अनुवाद
चूंकि राजा मनाने में कुशल था, इसलिए उसने रानी को धीरे-धीरे मनाना शुरू किया। पहले उसने उसके दोनों पैरों को छुआ, फिर उसका आलिंगन किया और अपनी गोद मे बैठाकर इस प्रकार कहना शुरू किया।