श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 26: राजा पुरञ्जन का आखेट के लिए जाना और रानी का क्रुद्ध  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  4.26.20 
 
 
अनुनिन्येऽथ शनकैर्वीरोऽनुनयकोविद: ।
पस्पर्श पादयुगलमाह चोत्सङ्गलालिताम् ॥ २० ॥
 
अनुवाद
 
  चूंकि राजा मनाने में कुशल था, इसलिए उसने रानी को धीरे-धीरे मनाना शुरू किया। पहले उसने उसके दोनों पैरों को छुआ, फिर उसका आलिंगन किया और अपनी गोद मे बैठाकर इस प्रकार कहना शुरू किया।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.