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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 26: राजा पुरञ्जन का आखेट के लिए जाना और रानी का क्रुद्ध
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श्लोक 19
श्लोक
4.26.19
सान्त्वयन् श्लक्ष्णया वाचा हृदयेन विदूयता ।
प्रेयस्या: स्नेहसंरम्भलिङ्गमात्मनि नाभ्यगात् ॥ १९ ॥
अनुवाद
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दुख से भरे मन से राजा अपनी पत्नी से अत्यंत मनोहर वचन कहने लगा। हालाँकि वह क्षोभयुक्त था और उसे संतुष्ट करने का यत्न कर रहा था, परन्तु उसने अपनी प्यारी पत्नी के हृदय में प्रेमजनित क्रोध का कोई भी चिह्न नहीं देखा।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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