श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 26: राजा पुरञ्जन का आखेट के लिए जाना और रानी का क्रुद्ध  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  4.26.17 
 
 
रामा ऊचु:
नरनाथ न जानीमस्त्वत्प्रिया यद्वय‍वस्यति ।
भूतले निरवस्तारे शयानां पश्य शत्रुहन् ॥ १७ ॥
 
अनुवाद
 
  सभी स्त्रियाँ राजा से बोलीं: हे प्रजा के स्वामी, हम नहीं जानतीं कि आपकी प्रिया पत्नी ने यह स्थिति क्यों बना रखी है। हे शत्रुओं को मारने वाले ! कृपा करके देखिए। वे बिना बिस्तर के जमीन पर पड़ी हुई हैं। हम यह समझ नहीं पा रहे हैं कि वे ऐसा क्यों कर रही हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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