श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 26: राजा पुरञ्जन का आखेट के लिए जाना और रानी का क्रुद्ध  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  4.26.15 
 
 
न तथैतर्हि रोचन्ते गृहेषु गृहसम्पद: ।
यदि न स्याद्गृहे माता पत्नी वा पतिदेवता ।
व्यङ्गे रथ इव प्राज्ञ: को नामासीत दीनवत् ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  राजा पुरञ्जन बोले : मुझे समझ में नहीं आ रहा कि मेरे घर का सामान पहले जैसा अच्छा क्यों नहीं लग रहा है? मुझे लगता है कि अगर घर में न माँ हो और न पतिव्रता पत्नी तो घर बिना पहियों के रथ के जैसा है। ऐसा कौन मूर्ख है जो ऐसे व्यर्थ के रथ पर बैठेगा?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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