न तथैतर्हि रोचन्ते गृहेषु गृहसम्पद: ।
यदि न स्याद्गृहे माता पत्नी वा पतिदेवता ।
व्यङ्गे रथ इव प्राज्ञ: को नामासीत दीनवत् ॥ १५ ॥
अनुवाद
राजा पुरञ्जन बोले : मुझे समझ में नहीं आ रहा कि मेरे घर का सामान पहले जैसा अच्छा क्यों नहीं लग रहा है? मुझे लगता है कि अगर घर में न माँ हो और न पतिव्रता पत्नी तो घर बिना पहियों के रथ के जैसा है। ऐसा कौन मूर्ख है जो ऐसे व्यर्थ के रथ पर बैठेगा?