इस तरह राजा पुरञ्जन अपनी पत्नी की खूबसूरती में फंस गया था और यों धोखा खा रहा था। दरअसल, वह भौतिक दुनिया में अपने पूरे अस्तित्व तक धोखा खा रहा था। उस बेचारे मूर्ख राजा की इच्छा के विरुद्ध भी, वह अपनी पत्नी के नियंत्रण में था, ठीक वैसे ही जैसे कोई पालतू जानवर अपने मालिक के इशारों पर नाचता-गाता रहता है।
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध चार के अंतर्गत पच्चीसवाँ अध्याय समाप्त होता है ।