श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन  »  श्लोक 57-61
 
 
श्लोक  4.25.57-61 
 
 
क्‍वचित्पिबन्त्यां पिबति मदिरां मदविह्वल: ।
अश्नन्त्यां क्‍वचिदश्नाति जक्षत्यां सह जक्षिति ॥ ५७ ॥
क्‍वचिद्गायति गायन्त्यां रुदत्यां रुदति क्‍वचित् ।
क्‍वचिद्धसन्त्यां हसति जल्पन्त्यामनु जल्पति ॥ ५८ ॥
क्‍वचिद्धावति धावन्त्यां तिष्ठन्त्यामनु तिष्ठति ।
अनु शेते शयानायामन्वास्ते क्‍वचिदासतीम् ॥ ५९ ॥
क्‍वचिच्छृणोति श‍ृण्वन्त्यां पश्यन्त्यामनु पश्यति ।
क्‍वचिज्जिघ्रति जिघ्रन्त्यां स्पृशन्त्यां स्पृशति क्‍वचित् ॥ ६० ॥
क्‍वचिच्च शोचतीं जायामनुशोचति दीनवत् ।
अनु हृष्यति हृष्यन्त्यां मुदितामनु मोदते ॥ ६१ ॥
 
अनुवाद
 
  जब रानी मदिरा पीती थी, तब राजा पुरञ्जन भी मदिरापान में लीन रहते थे। जब रानी भोजन करती थीं, तब वे भी उनके साथ भोजन करते थे। जब रानी कुछ चबाती थीं, तब वे भी साथ-साथ चबाते थे। जब रानी गाती थीं, तब राजा भी गाते थे। इसी प्रकार, जब रानी रोती थीं, तब वे भी रोते थे और जब रानी हँसती थीं, तब वे भी हँसते थे। जब रानी बेसिर पैर की बातें करती थीं, तब वे भी उसी तरह बातें करते थे। जब रानी चलती थीं, तब वे उनके पीछे-पीछे चलते थे। जब रानी शांति से खड़ी होती थीं, तब वे भी खड़े रहते थे। जब रानी बिस्तर पर लेट जाती थीं, तब वे भी उनके साथ लेट जाते थे। जब रानी बैठती थीं, तब वे भी बैठ जाते थे। जब रानी कुछ सुनती थीं, तब वे भी वही सुनते थे। जब रानी कोई चीज देखती थीं, तब वे भी उसे देखते थे। जब रानी कुछ सूँघती थीं, तब वे भी उसे सूँघते थे। जब रानी कुछ छूती थीं, तब वे भी उसे छूते थे। जब उनकी प्रिय रानी शोक में डूब जाती थीं, तब बेचारे राजा भी उनके साथ शोक में डूब जाते थे। इसी तरह जब रानी को सुख मिलता था, तब वे भी उसका भोग करते थे। जब रानी संतुष्ट हो जाती थीं, तब वे भी संतुष्टि का अनुभव करते थे।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.