स यर्ह्यन्त:पुरगतो विषूचीनसमन्वित: ।
मोहं प्रसादं हर्षं वा याति जायात्मजोद्भवम् ॥ ५५ ॥
अनुवाद
कभी-कभी वह अपने मुख्य दासों में से एक (मन), जिसका नाम विषूचीन था, के साथ अपने अंत:पुर में जाया करता था। उस समय उसकी पत्नी और बच्चों से उसे मोह, संतोष और खुशी का अनुभव होता था।