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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन
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श्लोक 54
श्लोक
4.25.54
अन्धावमीषां पौराणां निर्वाक्पेशस्कृतावुभौ ।
अक्षण्वतामधिपतिस्ताभ्यां याति करोति च ॥ ५४ ॥
अनुवाद
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इस नगरी के तमाम लोगों में निरवाक और पेशस्कृत नाम के दो नेत्रहीन व्यक्ति थे। हालाँकि राजा पुरञ्जन नेत्रवान लोगों का शासक था, किन्तु वो दुर्भाग्यवश इन दोनों अंधों के साथ रहता था। वह उनके साथ इधर-उधर जाता और कई तरह के काम करता था।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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