वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भागवतम
»
स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
»
अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन
»
श्लोक 52
श्लोक
4.25.52
आसुरी नाम पश्चाद् द्वास्तया याति पुरञ्जन: ।
ग्रामकं नाम विषयं दुर्मदेन समन्वित: ॥ ५२ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
पश्चिम की दिशा में आसुरी नाम का एक प्रवेश द्वार था, जहाँ से राजा पुरञ्जन अपने मित्र दुर्मद के साथ ग्रामक नामक शहर के लिए जाया करते थे।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.