श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन  »  श्लोक 51
 
 
श्लोक  4.25.51 
 
 
देवहूर्नाम पुर्या द्वा उत्तरेण पुरञ्जन: ।
राष्ट्रमुत्तरपञ्चालं याति श्रुतधरान्वित: ॥ ५१ ॥
 
अनुवाद
 
  उत्तर की दिशा में देवहू नाम का एक प्रवेश द्वार था। उसी द्वार से होकर राजा पुरञ्जन अपने मित्र श्रुतधर के साथ उत्तर-पंचचाल नामक स्थान पर जाते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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