श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन  »  श्लोक 50
 
 
श्लोक  4.25.50 
 
 
पितृहूर्नृप पुर्या द्वार्दक्षिणेन पुरञ्जन: ।
राष्ट्रं दक्षिणपञ्चालं याति श्रुतधरान्वित: ॥ ५० ॥
 
अनुवाद
 
  नगर का दक्षिण द्वार पितृहू नाम से जाना जाता था। इसी द्वार से होकर राजा पुरंजन अपने मित्र श्रुतधर के साथ दक्षिण पंचाल नामक नगर में जाया करते थे।
 
 
 
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