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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन
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श्लोक 50
श्लोक
4.25.50
पितृहूर्नृप पुर्या द्वार्दक्षिणेन पुरञ्जन: ।
राष्ट्रं दक्षिणपञ्चालं याति श्रुतधरान्वित: ॥ ५० ॥
अनुवाद
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नगर का दक्षिण द्वार पितृहू नाम से जाना जाता था। इसी द्वार से होकर राजा पुरंजन अपने मित्र श्रुतधर के साथ दक्षिण पंचाल नामक नगर में जाया करते थे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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