वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भागवतम
»
स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
»
अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन
»
श्लोक 49
श्लोक
4.25.49
मुख्या नाम पुरस्ताद् द्वास्तयापणबहूदनौ ।
विषयौ याति पुरराड्रसज्ञविपणान्वित: ॥ ४९ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
पूर्व दिशा में स्थित पाँचवाँ द्वार मुख्या, यानि प्रधान द्वार कहलाता था। इस द्वार से वह रसज्ञ और विपण नामक दो मित्रों के साथ बहूदन और आपण नामक स्थानों पर जाता था।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.