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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन
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श्लोक 47
श्लोक
4.25.47
खद्योताविर्मुखी च प्राग्द्वारावेकत्र निर्मिते ।
विभ्राजितं जनपदं याति ताभ्यां द्युमत्सख: ॥ ४७ ॥
अनुवाद
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पूर्व की ओर स्थित खद्योता और आविर्मुखी नाम के दो द्वार थे, किन्तु वे दोनों एक ही स्थान पर बने हुए थे। राजा अपने मित्र द्युमान के साथ उन दोनों द्वारों से होकर विभ्राजिता नामक नगर को जाता था।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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